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जं जं
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पार्श्व शान्ति-स्तवन
पार्श्व -स्तवन
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बाल पणे तिहुं ज्ञान विराजित,
उरग तणो जे उपगारी॥ जै, जै, ॥ ३ ॥ कमठ सठी को मान बिडारण,
धींगडमल्ल धनुषधारी ॥ जै. जै, ॥ ४ ॥ विषय विषोपम सरिखा जाणी,
मोह मान ममता मारी ॥ जै. जै. ५ ॥ केवल वरीयो शिवसुख दरीयो,
तरण तारण गुण संभारी ॥ जै. जै. ६ ॥ भविजन तारे पतित उधारे,
अविचल पद लहैं अवतारी ॥ जै. जै. 'श्रमरचंद ' दै आणंदै,
तिम वंदे मिल नरनारी ॥ जै. जै.
शान्ति जिन स्तवन
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हो लागे प्यारी । जै जै ॥२॥
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( १५५ )
शान्ति
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• हक आस पूरण भणी, कलि मांहे उदयो सुरकंद ॥ शां. ३ || अचरानंदन जग जयो, तुम सरिखो नहीं देव न कोय | 'अमरसिंधुर' नै पीयें, सुख संपत सुनिजर दृग जोय || शां. ४ ॥
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७ ॥
८ ॥
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