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. पटवा संघ तीर्थमाला-स्तवन
(१५३ )
पूरबे निनाणू वार समोसर्या रिषभ जिणंद । पगला रायण तल प्रणमंता सख नो लयो कंद ॥ अजित शांति पुंडरीक नमंता नयणानंद । चेईय चैत्यवंदन कर पाम्यो परमानंद ॥२७॥ सुचता विनये कीधी स्नात्र पवित्र उदार । सग क्षेत्र धन खरचै प्रघल मने अणपार ।। बहु मोला आभरण चढावै प्रभु ने अंग । हेम घड्या नग जडीया राजै नवमन रंग ॥२८॥ कडा कंठी कंडल में हार वीजोरा सार । मुगट तिलक मणि जडीया कहितां नाव पार।। श्रादिनाथ भंडार भरावे उजल चित । उज्जल धर्म आराधै बहु विध खरचै वित्त ॥२६॥ वड भट्टारक खरतर "महिन्द्र सूरि" मुणिंद । चंद जेम चढती कला दीपै तेज दिणंद ॥ सिंघ माल पहिरावी "दोनमल्ल" नै । ताम । "जोरावर" जसधर ना सीधा बंछित काम ॥३०॥ इण पर भाव भगत भल कीधा दिन पचत्रीस । चढत नगारो दीधो सफली मन सजगोस ।। "नवखंड पास" जुहार्या नरभव में लह्यो सार । "गवडी पास" जी भेट्या ए प्रातम अाधार ॥३१॥
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