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( ८० ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह
भातम अनुभव सूरज उदयो, मिथ्या मोह गयो दोरी |8| मि.| परम धरम को गुन प्रगटायो, 'अमर' संपद सुख पायोरी । १० मि. ।
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चिन्तामणि- होरी
राग - वसन्त
होरी आई रे, अधिक नरनारी सब रंग
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होरी आई रे,
चित हित दाई रे । होरी ० | १| रंग सुरंगे,
पेखत प्रीत अधिक पाई रे । होरी० |२|
घर घर होरी खेल मचत है,
सिंघ सकल कै मन भाई रे । होरी ० |३| "चिंतामणि" जी के चरण नमन कुँ,
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भाव अधिक हित चित लाई रे । होरी ० |४| मंदिर श्रावै फागण गावै,
सुतां श्रवण कुं सुखदाई रे । होरी० |५| चंग वजावै गुण मणि गावे,
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तालोटा दै मन भाई रे । होरी० | ६ | दरस सरस करकै सुखदाई,
परम प्रीत भविजन पाई रे । होरी० |७| भक्ति भाव केसर में भीना,
"अमर" संपदा जिन पाई रे । होरी ० |८|
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