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________________ ज्ञान-पञ्चमी-स्तवन ( ६१ ) भवियण भाचे ज्ञान आराधीयै रे, त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल । ए पुस्तक उपगारी आपणां रे, भांजै भ्रम जंजाल । भवि.।२। गणधर भाष्या सूत्र सिद्धांत ए रे, सुणतां श्रवण सदीव । अरथ एहनां अरिहंत उपदिस्यारे, बोध ल है जिण जीव । भवि.३। नयसाते निक्षेपो च्यार छ रे, नवतत्व जीवाजीव । करम अोठ नां कारण पिण कह्या रे, उत्तर भेद अतीव । भवि.।४। ए श्रत सागर नागर नित नमो रे, पूजी जै घर प्रेम । केशर पुष्प दीप धूपै करी रै, नैवेद्य फल धर नेम । भविश गुरु मुख थी ज्ञानामृत पीवतां रे, भाजै कोड कलेस । रोहणीयै जिम गाथा इक सुणोरे,शिवपद लह्यो सुविशेष । भवि.६। अाज अछ श्रत ज्ञान सिरोमणि रे, सकल जीव सुखकार । ज्ञान पंचमी ज्ञान आराधवा रे, 'अमरसिधुर' आधार। भवि. ७) इति श्री ज्ञानपञ्चमी स्वाध्याय । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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