SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह त्रिकरण शुद्ध त्रिकाल श्रवणे, सांभलतां जिण सुख लहै रे। फलय मनोरथ माल, भविजन भावै ज्ञान आराधीयै रे ।। मूल सूत्र ते थुड में साख छै रे, निक्षेपा प्रतिशाख । नय भृङ्गी रंगीली लुयरे , सूत्रारथ पत्र दाख । भवि.।३। जिण सांभलतां सुरनां सुख लहै रे, पुहप तेहिज सु प्रमाण । अनुभव लहिरी ऊन्हस रे, अक्षय सुख फल जाण । भवि.।४। नंदन वन सम पुस्तक परगडारे, श्री जिन शासन सार । पूर्जतां पातिक दृरै पुलै रे, एहिज सबल अाधार । भवि.।। जग जन तारक वारक क्रम तणो रे, भव नो भंजण हार । मोक्ष नगर में मार्ग मलपतारे, एहिज सबल आधार । भवि.।६। कमल सेठ जिम शिव कमला वरी रे, सुणतां श्रवण सिद्धांत । तिम जिनवाणी आणि ने हीयेरे,सुणजोधरिय निभ्रांत । भवि.७। शुभ घृत दीप धूप अक्षत भला रे, फल ने फूल में प्रधान । केसर सें पूजीजें हित धरी रे, 'अमरसिंधुर' सु प्रधान । भवि.८। इति ज्ञान पञ्चमी स्तवनम् । ----xox- - ज्ञान-पंचमी-स्तवन (वाटली निहालु रे बीजा जिन तणी रे, ए ढाल ) आराधो भवि भावै अहनिसै रे, अधिक धरी आणंद । निस वासर ए ज्ञान सु सेवना रे, कलि मैं सुरतरु कंद ।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy