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________________ श्री सिद्धाचल-स्तवन ( १) इण परि काल अनंतानंत मै रे, साधु अनंती कोडि । श्रीसिधगिरि परि शिव कमला वरी रे, वंदू बेकर जोडि । श्री पुष्पदंतगिरि भावै भेटियै रे॥१०॥ भी सिधगिरि ए परवत सासतो रे, जप जगदाधार । तिलक समो ए सहु तीरथ सिरै रे, सकल गिरा सिणगार। ___ महातीरथ ए मावै भेटिौ रे ।११॥ इण गिरि सनमुख जात्रा आवतां रे, पग पग पंथ प्रमाण । कोड कोड भव नां पातिक पुलै रे, वीर वदै इम वाण । श्री गिरिराज ए भाव भेटिौ रे|१२॥ छहरी पालै जात्रा चे करै रे, भाव सहित भरपूर । जोनी संकट नां जोखम टलै रे, दुःख दोहग जाय दर। श्री सेलगिरिवर भावै भेटिगरे।१३॥ "दिस" जात्राए कीधी दीपती जी, "मंबुईपुर" मन रंग। "अढारनेऊ" आणंद सँ जी, "अमरसिंधुर" चित चंग । ___ महागिरि ए नमीयै नेह सँ रे॥१४॥ इति श्री सिद्धाचल स्तवनम् । ज्ञान-पंचमी-स्तवन श्री जिन शासन नंदन वन समोरे, श्रुत सागर सख कंद । एक मना नित प्रति अाराधता रे, अधिक लह्यौ आनंद । भविजन भावे ज्ञान प्राराधीयैरे।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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