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(८) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
सासय तीरथ जग मैं सलही रे, त्रिभवन तिलक समान । पाप संताप तिमिर गण मेटवारे, भल हल उदयो भाण।
श्री शत्रुजयगिरि भावै भेटिग रे ।। पूरब निवाणुं वार पधारीया रे, श्रादै श्राद जिणंद । पांच कोटि मुनि सँ पुंडरीक जी, शिव पद लहोजी आणंद।
श्री उजलगिरि भावै भेटिौरे।४। नमि विनमि विद्याधर मुनिवरा रे, श्राव्या इण गिरराज । फागुण सुदि दसमी शिवपद लही रे, सारचा आतम काज ।
श्री कंचन गिरि भावै भेटियै रे।। दस कोडि मुनि से भल दीपता रे, द्रावड में वारखिल्ल । शिव रमणी सासय सुखनी वरी रे, जीतो मोह महल्ल ।
श्री सुरगिर में भावै भेटिौ रे ।। नमि विनमी राजानी नंदनी रे, चौसठे चित चंग। सिव गिरि ऊपर शिव कमला बरी रे, राची अविहड रंग।
श्री सासयगिरि भावै भेटियो रे।। दसरथ सुत दस कोडि से परक्यो रे, रामचंद्र रिखराज । पांडव वीश कोड परगडा रे, पामी शिवपुर पाज ।
श्री अवचलगिरि भावै भेटिौरे ।। थापचासुख शैलक गणि वरू रे, नव नारद बहु नेह । संब प्रजून करम कोडी हणी रे, गहि शिव सुंदर गेह ।
__ श्री पुष्पदंत गिरि भावै भेटियै रे।।।
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