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जिनवाणी-गीतम्
(८७)
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जिनवाणी-गीतम् (पिचकारण रंग वरसै गोकुल में पिचकारण०, ए चाल )
वाणी सुधारस वरसै, प्रभू तेरी वाणी सुधा० । अमृत सम जिन वाणी अनोपम,
सुणवै के जीय तरसै । प्रभु तेरी वाणी।। श्रवण सुणत जब सुख बहु उपजत,
हेत हीयै बहु हुलसै । प्रभु तेरी वाणी०।२। ए जिन वाणी चित हित धरस्य,
ते ते भविजन तरसै । प्रभु तेरी वाणी०३। रोहणीयै पर मत रोचवस्यै,
निज आतम गुण गहिस्यै । प्रभु तेरो वाणी०।४। 'अमरसिंधुर' सोलहै अवचल पद,
शिव सुंदर सुख वरस्यै। प्रभु तेरी वाणी।।
सिद्धाचल-स्तवन
(सं० १८६० दिशि यात्रा बम्बई में) धन धन जंबूद्वीप दक्षिण धरारे, दीपै सोरठ देश । सकल सैल गिरराज ने ए सेहरो रे, सेवित सरव सुरेस ।
__ श्री सिधगिरि ए भावै भेटियै रे।। चित हित अधिक पाणंद: विमलाचल ए विमलातम करे। फेडै दुरमति फंद, श्री सिद्धाचल भावै भेटियै रे।।
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