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(८६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
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निज जांणग सो अनुभव लहिरा, मूलांतम गुण सोभाव देहरा। नवल०॥३॥ विवहार नय सों गरज भई गहिरा,
आया है कुगति कुमति का छेहरा । नवल०॥४॥ मिथ्या मत मिट गए तन वहरी, 'अमर' लग्यो तब प्रभु जी से नेहरा । नवल०॥शा
जप-माला-गीत
राग-बसन्त जीया रे तजीय जंजाला, जपियै जिन गुण जप मालारी।त.। सुरत समाध सो दोरि वनी है, गुण मोतिन सुविशाला। धीरजता कौ मेर धरचो है, असी है अनुभव माला री।।त. तन मन वचन करी इक तान, थिर ओसन दृढ ताला । जाप जपंता इण विधि जीयरी, कटत दुकृत क्रम जालारी।।त.। अनुभव चिदानंद चित हित घर, ग्यान ध्यान गुण माला। 'चिन्तामणि' सुख संपत दायक, जपीयै 'अमर' जप मालारी।३।त.।
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