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( १८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
बालम सै तब प्रीत वधावण,
___ संयम लै सुखदाई । संयोगणि श्रा०। 'अमर' प्रीत बाधी अलवेसर, . ऐसी झरीयां लाई । संयोगणि श्रा०।४।
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राजुल-स्तवन-भादवा
राग-मल्हार भाद्रव इम मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । इन्द्र पाए हैं कर असवारी, बादल तंबू बनावै । सखी. भा.१। बदरी स्याम सोगज संचारत, लस सोतेजी लावै । सखी.मा. वाय सु वाय सुतोप बनी है, मधुर मधुर गरजावै । सखी. मा.२। प्रथवी नार मिले व सुरपति, नेह सुजल बरसावै । सखी. भा.३॥ काल चाल भाजेवा कारण, दांमनीया दरसावै । सखी. भा. नेह निजर निरखी निज पतकी, एम दरस दिखलावै। सखी.भा.४। रंग सुरंग सुदोब बनी है, सोवर वेस बनावै । सखी. भा. ताकी खूबी देख त्रिया सब, सोल शृङ्गार सझावै । सखी. भा.५॥ गीत गाक्त है सब मिल गौरी, राजुल मन नही भावै। सखी.भो. जादव जो अपने घर आवै, 'अमर' आनंद वधावै। सखी.भा.६।
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