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बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( १६ )
नेमि-राजिमती-स्तवन-भाद्रव
राग-मल्हार भाद्रवडो मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । प्रथवी नार हरित तन खूवां, वस्त्र सवेस बनाने । स. भा. १॥ सोल शृङ्गार सझै सब वनिता, रंग सुरंग सुहावै ।। गीत गावत है सब मिल गौरी, भोरी रंग वधावै । स. भा. २॥ राजुल ने चित कांइ नराचे, विरह बहुलता जावै । नेम नाह जो नयण निहाल. 'अमर पाणंद बधावै। स. भा. ३॥
नेमि-राजिमती-स्तवन-भाद्रव
राग--मल्हार
भाद्रवडौ मन भावे, सखी मेरी भाद्रव० । नेम नाह जो अब घर आवै, हीय. हुंस वधावै । स. भा. १॥ सोल शृङ्गार सजी सखीयन मिल, गीत मल्हार गवावै । काजल तिलक तंबोल सहावै, विरहानलकुं बुझावै । स. भा. २॥ राजिंद विण किम रात रहीजे, सेजडली संतावै। काम अरि मो केडै लागो, निस सम नींद न आवै । स. भा. ३। जाय सखी समझाय सनेही, इहां अलवेलो आवै। 'अमर' प्रीत वाधै अति अनुपम, दिन २ चढते दावै । स. मा. ४
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