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( २० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
नेमि-स्तवन-होरी
राग--जंगलौ [या वृजराज कु लाज नहीं मोकु गारी देत लाख सामें, ऐरी सखी ऐरी गारी० या बुज०। सब सखियन प्रिया संग खेले, मैं झूमती मेरे मन में, ऐरी २ मैं झू० या बृजराज. मोकु, ए चान में वसन्त] मेरो पिया मेरे संग नहीं, मैं तो कैसे खेल होरी मैं एरी एरी सखि ।
कै० मेरो० मैं तो। गोपियन संग गोवरधन खेलत,
___ मैं झूरत गोखन में एरो सखि मैं० ११ मे । अलवेसर मोकू छोड चल्यो है,
सगुणा सहसावन में एरी एरी स०।२। मे० । दिल दरियाव विरह जल उलटे,
नीर भरत आंखन में एरी एरी नौ०।३। मे० । भाद्रव की सी झरी री लगी है,
बुंद परत छिनछिन में एरी एरी बुं०।४। मे० । शिव गणिका याके कान लगी है,
भरमायो तिण भरमें एरी एरी भ० मे० । खून बिना चित खार धरी ने,
घर तज भज गए वन में एरी घ०।६। मे।
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