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बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह ( २१ )
पिउ की कुटिलता आज पिछानी,
यह विभचारी जन में एरी य० |७| मे० | दीख लेड केवल पद पायो,
जाय बसे शिवघर में एरी जा० |८| मे० । नेमीसर निज नेह निवाह्यो,
'अमर' प्रीत शिवपुर में एरी [अ०] || मे० |
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नेमि - राजिमतो - होरी
राग-वसन्त
कहो री सखि कैसे खेले होरी,
मेरो तो नाह गयौ घर छोरी |१| क० ।
विन अवगुण मोहि विरह जगायौ,
नेह की दोरी ए ततखिण तोरी |२| क० । शिव रामा उनकुँ भरमायौ, faa मेरो ति लीधो चोरी | ३| क० । सहसावन जाय संयम लीनौ,
नेमजी नाह भये भ्रम धोरी |४| क० !
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सहथ से जाय संयम ल्युंगी,
काम क्रोध मद मोह ॐ मोरी | ५| क० ।
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