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बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तधन-संग्रह ( १७ )
तीखी लागत है या तन पर, जाणि बृही तीर तीर।हां हो.।२। वैरण रैण वीजरियां चमकत, घन गरजत धीर धीर।हां हो.।३। बालम विन कहो कोन बुझावत, विरहानल पीर पीर।हां हो.।४। सुसनेही सहसा वन छाए, तासै मेरो सोर सीर । होहो.।। तरुणी अणपरणी तज चाल्यो, बाई नणंद वीर वीर।हां हो.।६। नेम नाह को संग राजुलकु,जाण मोठा खोर खीर । हां हो.७/
नेमि-राजुल-स्तवन-श्रावण वर्षा
राग--अडाणो मल्हार श्रावण बँद सुहाई, संयोगणि. श्रावण । प्रिउ की महिर सुपवन मुहावत,
लहिर वादरिया लाई । संयोगणि श्रा०१॥ वचन सुधारस सोई घन बरसत,
ग दांमनीय चलाई । संयोगणि श्रा० हास विलास सों घन गरजत है,
प्रेम सुनीर चढाई । संयोगणि भा०२॥ मेरो पिउ मो छांड चल्यो है,
छयल रहै वन छाई । संयोगणि श्रा०। राजिंद जो रंग सेज पधारत,
वरत रंग बधाई । संयोगणि श्रा०३।
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