________________
( १२० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
चौगत चतुर ढोलीय पोटे, प्रेम पथरणां लाया री। अप मारग प्रोसीसा भाया,तब तन मन सुख पाया हारी।ऐ.।आ.। लोभ लहर के जहर कह रहै, ता निद्रा भरमाया री। कुमता नार लगी है केडे, वासै चित ललचाया हारी।ऐ.प्रा./२। काम क्रोध वाकै है संगी, मिथ्या मान बढाया री। रागद्वष दो मीत मिले है, जाणे मा का जाया हारी।ऐ. बा.३। चतुर न चेतै जोलुं मनमैं, तो लु नींद हराया री। 'अमर' मूल आतम गुण जाणे, चेतै चेतन राया होरी।ऐ.। आ.४|
इति ।
वैराग्य-पद जगत मै को केहनौ नहीं जी, जीव विचारी ने जोय । मात पिता सुत कामिनी जी, थिर काहूकै न होय । ज०।। साठ सहिस सुत सगरनां जी, सुलसानां सुत बत्तीस । परते पहुंता सही जी, राम जं जगदीस । ज०।२। जनक तजी जिन रक्षतै जी, परगत कीध प्रयाण । दुरयोधन दुरगत गयो जी, मात पिता नव रह्यौ मांन । ज०॥३॥ पंचम करम प्रबंधता जी, मोक्षता ए मन धार । धीरता ए मन धारज्यो जो, एह संसार असार । ज०।४। धरम इक सार संसार में जी, सद्गत सुक्ख दातार । धरम करो भवजल तरो जी, 'अमर' जग एह आधार ।
ज श इति पदम् ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org