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एकत्व - पद
एकत्व-पद
तु नहि किसकी को नहि तेरो, श्रवधू आप इकेला है। चौगत केरी चहुट मची है, हटवाडे का मेला है | तु ० |१| रामत नट नांगर ज्यु' राजे, खिरा इक केरा खेला है। सांझ सराहि भरीसी दोस, ग्रह सम खाली झेला है | तु ० |२| किसका सुत पति सुन्दर नारी, किसका गुरुनें चेला है । चेत चेत रे 'अमर' भमर तु, आतम राम इकेला है | तु ० |३|
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आत्म-प्रबोध राग - जंगलो
ऐसे कही जाय कैसे, काया माया मेरी सही रे | ऐसै.। का। १ । काया माया कारमी, पीपल जेहो पान
चंचल जोबन थाउखो, जेहो संध्या वान | ऐसे । का. । २ । पर पुद्गल काया रची, जीव द्रव्य कै योग ।
( १२१ )
भावातम पुद्गल मिली, भोगवते हैं भोग । ऐसे । का. | ३ | करता चेतन करम को, जाणत है सब कोई ।
होइ । ऐसै.। का. । ४ ।
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जो जैसी प्राप्त करै, भुक्ता तै सो करता कर्म वसै परै, निज गुण दृष्टि न पर परणतसै परणमै अनुभव धंधे
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जोय ।
होय । ऐसे । का. । ५ ।
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