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( १२२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह जबुधी भए जीवडे, राचे रमणी रूप । मद माते भए मानवी, परत विषय के कूप । ऐसें.।का।६। पांच प्रधाने मिले जई, खलदल करम से जाय। तेवीसत संकर संग हुई, ध्रम धन लुटै सोय । ऐसें.! का.।७। जोबनीयो जोरे चढे, राचै रमणी रंग। वडपण आए वालहा, उड गए रंग पतंग । ऐस. का.।८। जोवन जाते सीस पर, वैस लागे वग्ग । जोर जरा को जांण कै, उड गए काले कग्ग । ऐसें.। का.।।। जोबनीयो जातो रहै, निवले पंच रतन्न । गत मति दंत गए गुणी,गय लोयण गय कन्न। ऐसे.का.१०॥ सिथल अंग होवै सही, कह्यौ न मान कोय । धन धृती लै सुत सबे, कह्यौ न मानें कोय । ऐसै.। का.११॥ पीछे पछतावै पडै, मैं हुवो मती हीन । बहि तैवारै बापडी, ध्रम मैं न भयो लीन । ऐस.। का..१२॥ तो तै चेता चतुर नर, करो कछु भ्रम काज । 'अमर' लहौ जिम आतमा,राचौ अवचल राज। ऐस.। का.॥१३॥
जीव-प्रबोध-पद
राग-वसन्त (भोरी है री मईया एतो, कपटी है बहुत कन्हैया. भोरी, ए चाल) अनुपम देश लही श्रारजकुल,
लयो श्रावक कुल सुखकर रे।
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