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( ११४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
जुलम कियो जेठाणी जाण्यो,
नख सिख में तब रोष भरी री।३। दे। नेउर उनको उन छिन लीनो,
सुरंग चूनरीया तिण फारी री । ४ ।। हार हिया को तिण हर लीनो,
देराणी तब रोस भरी री । ५। दे। पिउ नै जाय पुकारण लागी,
जेठ श्रवण सुणि चित्त धरी री । ६ । दे। भोजाई से देवर लरीयौ,
ऐसी वार्फ खबर परी री।७। दे। ३. एहवौ अन्याय जाणी सुमता जेठाणायै वितर्क ते तरङ्ग भाव लहिरी मूल गुण विचारि ने।
४. विनय मिथ्यात्त्व पगा नो गुण तद्रूपी नेउर खोस लीणों एतले ४ मिथ्यात्व में झोले छै। तिण देराणीय जेठाणी नी श्रावरण रूप ओढणी फाड़ नांखी, तिवार।
५. देराणी कुमता रौ विनय मिथ्यात्त्व तेहनो विनयरूप मिथ्याप तेहनो कोमलता रूपी गुण हार ते ले लीधो । तिवार कुमता देरांणी रोस भरांणी एतले कोमलता गई कठोर पणो आयो एतले तीव्र घणै मिथ्यात्त्व नै उदयै विशेष कुमत मोहाशक्त थई।
६. तिषारै विवेक राजाये आपणो येष्टता मूल गुण मन में धरी ने।
७. सुमता से मोह झगड़ती जाण तेहनी खबर ज्ञान गुणे थी जाणि में।
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