________________
( ७० ) वम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
छल छिद्र डाक श्राकण टलें,
मन वंछित सुख यावी मिलें ॥ ५ ॥ सुपनें ही संकट नव होय, दिन दिन चढती दोलत होय । चिन्तामणि चिन्तामणि कहो,
लीला लाछ घणी जिम लहो ॥ ६ ॥ चिंतामणि जो होय सहाय,
दुख दोहरा तिहां निकट न आय । चिंतामणि नों जपतां जाप,
परहो जाये पाप संताप ॥ ७ ॥ चित्त, घर नित्त ।
चिंतामणि सेवें इक रली रंग वा श्री चिन्तामणि हीयडै में घरो, जग जय कमला नित प्रत वरो ॥ ८ ॥
यह निसि पामैं अधिक आणंद, जय जय रव करें जाचक वृन्द | ते पसाय चिंतामणि तणो,
भविजन गुण माला नित गुणो ॥ ६ ॥
उभय लोक साधन ए भलो, daraम जिन जग सिर तिलौ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org