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( ११२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह सतवादी भल भूप शिरोमणि, पांडव वन विचरै रे । सत०।२। नल राजा दवदंती नारी, वर वन वास वरै रे । सत०३। सत सीता यै जो मन धरियो, अनल सैनीर करै रे । सत०।४। सत संसारे जग तस लहीजै, 'अमर' आणंद धरै रे ।सत ।
शील-परस्त्रीसंग त्याग-गीत
राग-वसन्त
न कर नाह परनार तणौ संग,
कह्यौ हमारी कर रे, हां नहीं रेशन कर। निज कुल में क्युं कलंक लगावै,
क्यु भटकत घर घर रे, हां नहीं रे।। न कर। निस वासर में नींद न श्रावत,
पर घर में रहै डर रे, हां नहीं रे।३। न कर राज में दंडे लोक में भंडे,
अपजस नौ ए घर रे, हां नहीं रे।४। न कर। धान पाणी नी होय न रुचता,
नीच कहावै नर रे, हां नहीं रेशन कर। धन लुटै छुटै बल वीरज,
पग पग ताकै अरि रे, हां नहीं रे।६। न कर।
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