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बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन- संग्रह ( ७ )
नेमि - राजुल - स्तवन
( राग - बसन्त )
विभचारी भयो मेरो बालमीयो, आज भेद मै पायो । वारी. आज . । सिव गणिका से संकेत करीनैं, गढ गिरनारै छायो । वारी गढ० विभ० आज० ॥ १ ॥
कुलवंती याकुं काहि कुं चहियै, वाहिसै चित ललचायो मैं हि निगोरी भोरी भई हुं, यातै प्रेम लगायो । वारी यातै ० विभ० ज० ॥ २ ॥
कपट की से कारो भयो है, देव प्रगट दरसायो ; नव भव की इस प्रीत न जांगी, छिन मैं छेह दिरायो । वारी० छिन० विभ० श्राज० ॥३॥ हम भी शिवत्रिय संग रहैगे, सुख हुय जेम सवायो; नेम राजुल मिल चल बसे है, 'अमर' आणंद वधायो । वारी अम० विभ० ज० ॥४॥
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नेमि - राजीमति - स्तवन
( राग - फाग )
भोरी में सहियर बहुत भई, भोरी में ।
पहिली इनकुं नहीं रे पिछाएयौ, विरह वियापित तेण भई | भो. १ ।
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