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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तषन
(४१ )
अंगी देख अनूपता, सहु को करै सराह । धन "चिंतामणि" जग धणी, वाह प्रभू त वाह । अं०१०॥ पूरव पुन्यै मैं लह्यो, साचो समरथ साम । भवजन बंदौ भावसं, 'अमर' आसा विसराम । अं०११॥
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन
राग-वसन्त अडाणी धणिय एक चिन्तामणि ध्यावो,
भर भर मोतियन थाल वधावो । पय प्रणमी नै पूजा कीजै, गुण याकै मधुरे सुर गावो ।
ध शम०। जुगत भगत भल जाप जपीजै,
तो दुरगति दुख कुंकबहु न पायो । ध०१२।भ०। दीन दयाल कपोल कहीजै,
प्रीतम इण सम अवर न पावो ।ध०३।०। छति अधिकी अोपम प्रभु छोजै,
जात्री जन मिल मिल के आवो ।ध०४।। सुजस बाल जगत में गाजे, 'अमर' संपद सुख वेग वधावो ।
ध शमः।
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