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________________ ( ४२ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-वसन्त मेरे मन मिंदरियै प्रभुजी पधारे, तो आज भयौ आनंद । मेरे। मिथ्या ताप गयौ अब मेरो, समकत उदय अमंद । मेरे सम्यक ज्ञान चरण दरसणतो, दोपत जाण जिवंद। अब अनुभवता उदयो मेरे, फट गये भ्रम के फंद । मेरे०।२। तीन तत्व की सरधा पाई, उल्हस्यौ मन मकरंद। करण अपूरवता गुण प्रगट्यो, पाम्यौ परमानंद । मेरे॥३॥ चौधन घाती तप घण ताड़े, क्रोधादिक निकंद । राग द्वष दो दूर विडारे, झीले सुमत समंद । मेरे०।४। चिन्तामणि सुनिजर सीतलता, ज्ञान सु सुरतरु कंद । सोसफलौ फल्यो अम्ह घर आंगण, 'अमर' भयौ आणंद।मे। चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन राग-सोरठी ( करवो ) बसन्त ( पिचकारण रंगवरसै गोकल में पि०, ए चाल ) चिन्तामणि मेरे चित में वसे हैं, निस वासर नित मन में। एरी सखि निसः। पलक एक विसरूँ नहिं प्रीतम, बाप जपत छिन छिन में । एरी० ११॥ चि०। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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