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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
( ४३ )
तेवीसम जिन जग जन तारक, न रहे भव जल निध में । एरी०
न चिका मुमता सागर गुण मणि आगर,
न परे क्रम वागुर में । एरी० न०।३।चि०। उपशम दरियो ज्ञान सु भरियो,
भूले नहीं भव भर में। एरी० भू०१४। चि० अनुभव अभ्यासी है अनुपम,
सीए मोख नगर में। एरी०व०॥चिः। ए प्रभु ध्यावो नवै निध पावो,
'अमर' सुजस लहौ जग में। एरी० अ०।६।चि०।
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन (सखी मेरो अंचरो पकर कै गयो, ऐसो नेह भयो न भयो, मेरो०, ए चाल)
मेरो पास जिणंद जयो, __ और न ऐसो देव भयो, मेरो पास० | प्रांकणी। श्री चिन्तामणि जिनवर जपतां,
पातिक गयो री गयो । सखी रीपा.और.१ मे. पा.। पूरव पुण्य तणै सुपसाये,
दरसण लह्योरी लह्यो।सखीरी द.और.।२१ मे.पा.।
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