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( ४४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
सकलाई जग साची निरखी,
"मंबुई"ठयोरी ठयो। सखी री मं. और.।३। मे. पा.। सकल संघ कुसुख को दायक,
सुप्रसन्न भयोरी भयो। सखी रीसु.और.४ मे.पा.। जाप जपंता पूज करता,
पातिक गयो री गयो । सखी रोपा.और.श.पा.। तेवीसम जिन जग जन तारक,
जग त्रय जयोरी जयो। सखी रीज. और.।६। मे.पा.! "अमरसिंधुर" प्रभु ने सुपसाय,
आणंद लह्योरी लह्यो।सखी रोप्रा.और.७। मे.पा.!
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन
राग-वसन्त धमाल चरण कमल जिनराज नो हो,
नमा नव निध होय हो, मेरे ललना न० । अष्ट करम उपसम थकी हो, अड सिध नी प्रापत जोय ॥१॥
रंगीली बातम रंग भरी हो । पूज्यां पुण्य वधै घणौ हो,
प्रणम्यां जाय पाप, मेरे ललना प्रण।
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