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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
( ४५ )
एक मनां आराधता हो,
दुरगत नां टलय संताप ।२। रंगी०। ध्येय सरूपै ध्यावतां हो,
करम नी तूटै कोड़ि हो, मेरे ललना कर० । चिंतामणि चित में धरो हो,
मिथ्यातम नांखसे तोड़ ।३। रंगी। एहवो साहिब आपणो हो,
सकल देव सिरताज, हो मेरे ललना स० । "अमर" दियै सुख संपदा हो,
महाज गरीब निवाज ।४। रंगी० ।
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन
राग वसन्त [ ऐसे कन्हईए लाल गोपिन में डारे गुलाल मुठी भरके, ए चाल ] बाबो चिन्तामणि पास विराजै,
महिर निजर सब पर निरखै । मन हरखै चित हरखे, बाबो चि०,
सुनिजर महिर से सब निरखै ।बा०। ०। सकल संघ कँ सुख को दोयक,
नेह निजर से सब परखै । वा०म०।
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