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( ४६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
त्रिभुवन साहिब तखत विराजे,
अभवी जन हियरा धरकै । बा०म० विवुध नयन की बंद झरत है,
वाणि सुधारस घन वरसै । बा०३०म०) पाप ताप सब दूर विडारे,
हित धर के दिल में हरखै । बा०म० सुमता सागर गुण के आगर,
अनुभव रस गुण आकरले बा०म० दीन दयोल सुध्रम धन दाता,
दुरित दोष कु ए घरषै । बा०।६।म० 'अमर' मुगट मणि सब ए राज,
सुर बीजे नहि या लिखवै । बा०।७।म।
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन
राग---सोरठी वसन्त श्री चिन्तामणि पास की मै पूज रचाउँ री। अरी अरी मै पूज रचाउँ री,
भला मलां पूज रचाउँ री ।श्री चि.। तन मन वचन करी इक तानें,
गुण मणि गाउँ री । अरी २ गुण. श्री चि..।
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