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________________ चेतन-सुमति-गीत (१३१ ) मिथ्यो गणिकायै भरमायो, माल सवे मुसखायो री। जनम फकीर भए जब जैसे, तब अपनें घर आयो री । आ.।। मुमति सोहामणि सै मन लायो, प्राण प्रोगै सुख पायो री। अवचल प्रीत बधी अति अनुपम, अजर 'अमर' पद पायोरी। प्रा.४। चेतन-सुमति-गीत राग-जंगलौ नेहरो लगायो सहीयो मेरो कह्यो मानें नही रे। नेहरो। निगुणो भरमायो सहीयां, मेरो कह्यो माने नहीं रे। बहुरंगी मेरो बाल हो, महाबली महाराय । मदमातो रातो फिरे, राख्यौ ही न रहाय । ने.। मेरो.।१। पहिली मो परणी हती, प्रीत रीत भल जोय । रंग रमता इक सेज मैं, कपट न हुँतो कोय । ने.। मेरो.।२। कुलटा जब काने लगी, भरमायो तिण भूप। निजघर तज भज गयो तासुधर, पड्यो रूडो देखे रूप! ने.। मे।३। वसीयो बालम तासु घर, पलक न बोडै संग । कुमति नार के. पडी, रातो रंग पतंग । ने.। मेरो.।४। रंग रसीयो वसीयो तिहाँ, सुगुणी नी तज सेज । प्रीतम प्यारी तज गयो, निगुणौ नाह निहेज । ने.। मेरो.श Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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