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(१३० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
वा कुलटा है नीत अनीती,
धन धूती लियै छिन मैं । एरी सखो. ध.। मे। जनम फकीर भयो जब जाणे,
छेह देत इक छिन मैं । एरी सखी. छ.। मे.।२। या कुमता मेरे केड लगी है,
भरमायो तिण भरमैं । एरोसखी. भ.। मे। प्रसिध विवेक मंत्री पाठवायकै,
घेर अण्णाव घर मैं । एरी सखी. थे। मे।३। सुमति सोहागण नामतो साचो,
खिजमत कर खिन बिन मैं । एरी सखी. खि.मे.। अवचल वास वसै पिउ अनुपम, "अमर" प्रीत शिव घर मैं । एरी सखी. अ.। मे.[४॥
-०४चेतन-सुमति-गीत
राग-रामकली पुनः अडाणो आज आणंद भयो सुण सजनी री, आज०
रजनी सफल विहाणी री। प्राण जीवन निज गेह पधारे, हरष हीये बहु पाणीरी। आ.।१। सरपा सुंदर मिंदर मांही, मुमता सेज विछाई री। राघडली बातडली करतां, सारी सफल विहांणी री। पा.।२।
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