________________
चेतन-सुमति-गीत ( १२६ ) हित नी बात कहुँ हित जांणी, तौ खिण खिण मैं खीजे,
एरी सखी तौ० । पर घर अपणौ जांणि रहित है, निरबुध ते पभणीजै,
एरी सखी निरबुध० । नाह० । कहो॥३॥ मदमातो मोहन है मेरो, निज पर सुध न लहीजै,
एरी सखी निज० । निज नारी की सोध न जाणे, बालम विकल भणीजै,
एरी सखी बालम | नाह० । कहो॥४॥ कुलटा के यो केड लग्यो है, मेरो कहो न मनीजै,
एरी सखी मेरो । 'अमर' सोभाग वगै घर आयां, चेतन चित्त धरीज,
एरी सखी चेतन० । नाह० । कहो ॥॥
चेतन-सुमति-गीत
राग-सोरठी वसन्त मेरो पिया मेरो कह्यो री न मानत.
पैस रमै पर घर मैं, एरी सखी पैस रमै० । मेरो। पूरवली पिण प्रीत न जांणी, कुल मती भयो करमै । एरी सखी. कामे. १॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org