________________
( १२८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
तप जप संयम कुजे राता, ते सदा लहेसी सुख साता।
गुणी जन तेहनों गुण गाता । सुणि० । ७। वाते क्रम अरि दुरै कीजै, पातिक नों पडदौ जिम छीजै,
अनुभव अमृत रस तिण पीजै । सुणि० । ८ । शुध श्रावक भ्रम ने धारीजै, विषया रस दूरै वारीजै,
मानव भव सफलो इम कीजै । सुणि.18 साची धम शीख होयडै घरीशै, वर अखय महाशिव सुख वरीये,
ए'अमर' वाणि गुण मणि गहियो। सुणि०।१०।
इति आत्म-शिक्षा-शिझाय ।
चेतन-सुमति-गीत ___ राग-सोरठी वसन्त नाह मेरो अब निठुर भयो है ।
कहो सखी कैसे कीजै एरो सखी ॥ कहो सखी। मो तजकै अब और भजत है, कपटी कुटल कहीजे,
एरी सखी कपटी । नाहकहो०॥१॥ कुलवट मारग कहि समझायो, छिन भर तोहि न छीजै,
एरी सखी छिन । निगुण नाह हठ शठ वादी, राग नहीं किम रीमैं,
एरी सखी राग० । नाह० । कहो॥२॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org