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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन ( ४६ ) चिन्तामणि-पाच-स्तवन
राग-चलित मधुर वसन्त चिन्तामणि मुझ चित वस, मन रंगै बाधै उछरंग। रात दिवस लीणौ रहै, पोयण से जिम रातौ भृग । चिं.१॥ देव न दूजो दिल धरूँ, प्रभुजी से बांध्यौ बहु प्रेम । इक तारी मुझ ए सही, देव दूजौ नमिवा नौ नेम । चिं.।। सुरतरु तजि नै साहिबा, बांवल नै कुण घाले वाथ । रतन तजी मन रंग सुं, पाहण नै किम लीजै हाथ । चिं.।३। पूरब पुण्य संयोग सुं, साहिब नी पामी चरण नी सेव । तरण तारण त्रिभुवन जयो, दुनिया में तू साचौ देव । चिं.।४। चरण शरण भव भय हरू, सुखदाई मुझ साचौ साम । 'अमरसिंधुर' नै भव भवै, आणंदी थे प्रातमराम । चिं.।
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन
____राग-वसन्तेपि पूरबी जय जय चिन्तामणि जगदीसर,
त्रिभुवन तेज सवायो, वारी त्रि० । दरस सरस लहि देव तुहारो,
परमानंद सुख पायो, वारी पर० १जै। मूलातम गुण हुँ उलसायो,
अध्यातम उलसायो वारी अ०। संत सनेही साजन मिलतां,
हिव हुऔ हरख सवायो वारी हि०२। जै०।
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