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( 45 ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
अाराधीया गुरु तुरत आवै, वरदीयै सुखवृन्द । कष्ट चूरै विधन दुरै, कलै सुरतरु कंद । सेवो.॥३ वर पुत्र संपद कलत्र दायिक, गच्छ खरतर इंद । सभसी संपद दीयै मुनिजन, प्रसिद्ध परमाणंद । सेवो.।४। भूत प्रेत पिचाश नां भय, वले तसकर वृन्द । नाम मंत्र निकट नावै, दफय हुए सड दंद । सेवो.।। सेवक भणो दै सुख संपद, महिर धरीय मुणिंद । सकल सुख दायिक सुगुरु, ए चवै मुनि इम चंद । सेवो.।६।
जिनकुशलसूरि गीत
राग-रेखता सगुरु ते देव साचा है, रिदै तुझ ध्यान राता है। दुनी मैं देव बहु देखे, गिणंता ज्ञान नहि लेखे ॥१॥ चावो पटधार तु चंदा, इलायै अवतस्यो इंदा । नमै तो घरण नर नारी, "छाजेडा" वंश छत्र धारी ॥२॥ मोटो गुरुदेव मणधारी, वारी जाउँ तोहि बलिहारी । 'कुशल' गुरु सकल सुख कीजै, संपदा 'अमर' मोहि दीजै ॥३॥
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