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जिनकुशल सूरि-गीत
( ६
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जिनकुशलसूरि गीत
राग-परमाती महिरवान महाराज बडे हैं, "श्रीजिकुशल सरिंदा" । मौजी साहिव है मणिधारी, परतिख पूनिम चंदा ।महिर.११ सकलाई साची जग निरखी, नमण करै नर वृन्दा। पूजक जननां वंछित पूरै, कल मझ सुरतरु कंदा । महिर.।२। अपणां जांणी ने अलवेसर, समपीजै सुख वृन्दा। सुनिजर छत्र छांह कर सदगुरु, 'अमर' वधैं श्रानंद। । महिर.३।
जिनकुशलसूरि गीत
राग बसन्त मेरे सदगुरु कुशल सुरीसर जूक तो, चरण कमल चित लावो। चरण कमल चित लावो, सुगुरुजी के चरण कमल चित लावो। सदगुरु कुशल सूरोसर जूकै,
मैं चरण कमल चित लावो । प्रहसम मिल में पूज रचायौ तो,
भावन मन शुध भावो। मेरे सद.३१॥ परसिध अष्ट सम्पदा पावो,
नव निध गेह बधावो ।
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