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जिनकुशलसूरि-गीत
( १०१ )
संकट तिमिर हरेवा साहिब,
दीपत तेज दिणंदा रे । पू०।३। श्री। चिंता चूरै परता पूरै,
वर दै वंछित वृन्दा रे। पू०।४। श्री। सुत संपत सुंदर सुख दायक,
___ कल मझ सुरतरु कंदा रे । पू०।। श्री। अपणा दास जौणी अलवेसर,
दूर हरौ दुख दंदा रे । पू०।६। श्री। 'अमर' समर श्री सदगुरु साचौ,
अहनिशि होय आणंदा रे। पू०७। श्री०।
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जिनकुशलसूरि गीत
राग-बसन्त
श्री जिनकुशल सरीसर साहिब, चंद सुरिंद पटधारी।। विरुद बडाला श्रवण सुणी नै, वारि जाऊँ वोर हजारी ११३ श्री.। अपणा जाणी नै अलवेसर, मत मूको बोसारी।। अरियण जण ना कंद निकंदौ, ज्य का रूख कुठारी ।२। श्री.। सख संपत दीजै गुरु मेरे, हेत हियै बहु धारी। 'अमर' तणी आशा पूरीज, सनिजर निजर निहारी ।। श्री.।
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