________________
(१०२) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
जिनकुशलसूरि-होरी
___ राग-पूरवी वसन्त असे "कुशल" सुरिंद नीके रंग,
मंडप मझ होरी खेल मचाये । औसे। ताल कंसाल मृदंग मनोहर,
वाजिन चंग बजाए ॥१॥असे मिल मिल सुश्रावक मुविवेकी,
गहिर वसंत गवाए ॥ २ ॥असे। चंदन चोवा अवर अरगजा,
छिड़कत भक्ति सुभाए ॥ ३ ॥ असे।। घटा मंडाणी जिम श्रावण धन,
अबीर गुलाल उडाए ॥४॥से। हस हस छंदै देत तरोग,
आणंद अंग न माए ॥ ५ ॥ असे मिल मिल टोरी खेलत होरी,
भवि गुरु भक्ति भराए ॥६॥असे। 'अमरसिंधुर' चित हित उछरंगे,
फाग वसन्त सहाए ॥ ७॥ असे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org