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________________ (२) हैं। आशा है पाठकों को भक्तिविभोर करने और आध्यात्मिक प्रेरणा देने में ये स्तवन - पद सहायक सिद्ध होंगे। प्रस्तावना इस ग्रंथ में जिन वाचक अमृत सिंधुर की पदावली का संग्रह है। उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ दे देना आवश्यक हो जाता है। 'बृहत् खरतर - गच्छ' के सुप्रसिद्ध छोटे दादा साहब गुरुदेव - श्री जिन कुशल सूरि जी की शिष्य परंपरा में ही वाचक अमर-सिंधुर हुए हैं। इनका मूल नाम अमरचन्द था । सं० १८४० की चैत्र बदी ४ को जैसलमेर में जिन लाभ सूरि के पट्टधर जिनचन्द्र सूरि जी ने इनको दीक्षा दी। दीक्षानंदी की सूचि में इनका मूल नाम अमरा, दीक्षा नाम अमर सिंधुर और इन्हें युक्ति सेन गरि का पौत्र (पोता-चेला ) लिखा है। अमर सिंधुर जी ने अपने रचित 'निनां प्रकार की पूजा' की प्रशस्ति में उस पूजा की रचना का समय स्थान और अपनी गुरु परंपरा निम्नांकित पद्यों द्वारा बतलाई है: अढा यासी वरसे, सुदि तेरस सलहीजे ॥ भ० जा० ॥ वैशाख मास मंबई बिंदर, बिंदर मेरु वदीजे ॥ भ० जा ० ||१२|| तेवीसम जिनवर त्रिभुवन पति, सकलाई सलहीजे ॥ भ० जा० ॥ श्री चिंतामणि पास पसाये, गुणमणि नित गाईजे ॥ भ० जा०|| १३ || सदगुरु कुशल सुरीसर साहिब, गछ खरतर गाईजे ॥ भ० जा०|| सकल संघ सुख संपत्ति दायक, पद युग नित प्रणमीजे ॥ भ० ज० ॥ १४ ॥ सूरि सिरोमणि आण अखंडित, हरप सूरीसर राजे ॥ भ० ज० ॥ as खरतर चौशाख विराजे, क्षेम शाख चढत दिवाजे ॥ भ० ज० ||१५|| वाचक युक्तिशेन जस धारी, तेहनो सीस तवीजे ॥ भ० ज० ॥ जैसार सीस वाचक पदधारी, अमरसिंधुर सलहीजे ॥ भ० ज० ॥ १६ ॥ पूज निनां प्रकारनी कीधी, भविजन मिल गाईजे ॥ भ० जा ० ॥ मंगल माल बधे तिहां दिनदिन, वंछित फल पाईजे ॥ भ० ज० ॥ १७ ॥ इति श्री सिद्धाचल जी निनांगुळे प्रकारनी पूजा संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003817
Book TitleBambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherChintamani Parshwanath Mandir
Publication Year1958
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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