________________
प्रस्तावना
यह पूजा 'श्री जिन पूजा महोदधि' नामक ग्रंथ में प्रकाशित हो चुकी है । इसकी रचना सं० १८८८ वैशाख सुदि १३ को बंबई में श्री चिंतामणि पार्श्व नाथ के प्रसाद में हुई। श्री जिन कुशल सूरि जी के शिष्य महोपाध्याय विनय प्रेभ उनके शिष्य उपाध्याय विजयतिलक और उनके शिष्य बाचक क्षेम कीर्ति हुए। जिनकी शिष्य संतति क्षेम शाखा के नाम से प्रसिद्ध हुई है । उसी शाखा में वाचक युक्तिसेन के शिष्य वाचक जयसार के शिष्य वाचक अमर सिंधुर हुए। आपके गुरु जयसार जी के रचित दो ग्रंथ उपलब्ध है जिनमें से कार्तिक पूर्णिमा व्याख्यान, संस्कृत गद्य में सं० १८७३ जैसलमेर में रचा गया और दूसरा ग्रंथ 'श्रोणिक चौपाई' राजस्थानी पद्य में है जिसकी सं० १८७६ की लिखी हुई प्रति श्री बद्रीदास जी के संग्रह (कलकत्ता) में है। उसमें दी हुई गुरु परंपरा के अनुसार आप महोपाध्याय सहज कीर्ति जैसे विद्वान की परंपरा में हुए हैं । महो. सहजकीर्ति के शिष्य पुण्यसार उनके शिष्य कनकमाणिक्य के शिष्य रत्नशेखर के शिष्य दीपकुंजर के शिष्य हर्षरत्न के शिष्य युक्तिसेन के शिष्य जयसार हुए। उपाध्याय सहजकीर्ति का विशेष परिचय जैन सिद्धांत भास्कर वर्ष १६ अंक २ में हम प्रकाशित कर चुके हैं। अतः उनकी पूर्व परंपरा और उनकी रचनाओं आदि का परिचय उस लेख में देखा जा सकता है।
अमर सिंधुर के निनांणु प्रकार की पूजा के अतिरिक्त प्रदेशी चौपाई (सं० १८६२ काती वदी ६ बंबई), और १६ स्वप्न चौढालिया प्राप्त है , इनके अतिरिक्त प्राप्त छोटी समस्त रचनाओं का संग्रह इस ग्रंथ में किया जा चुका है। पर इनमें कई रचनाएँ त्रुटित रुप में प्राप्त हुई हैं। जिस प्रति से इनका संकलन किया गया है वह गुटका कवि के स्वयं लिखित हमारे संग्रह में है। इसमें करीब २५० पदादि रचनाएं हैं, जिनमें से कुछ ही दूसरे कवियों की हैं बाकी अधिकांश अमर सिंधुर जी के ही रचित हैं । इस गुटके के प्रारंभिक २६ पत्र जिनमें ३६ स्तवन-पद थे, प्राप्त
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org