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(४)
प्रस्तावना
नहीं हुए और इसी तरह पत्र ४२ से ६२ तक के २१ पत्र भी इसमें नहीं हैं जिनमें नं० ५१ से ७७ तक के २२ पद थे। फिर नं०६४ और ७०-७१ वाले ३ पत्र भी इस प्रति में नहीं हैं। जिनमें नं० ७६-८० वाले पद्यों का अंत व आदि का कुछ भाग और नं० ६१ से ६४ तक के पद्य थे। अन्य प्रति के नहीं मिलने से हम अमर सिंधुर जी के इस प्रति में अप्राप्त करीब ६५ स्तवन-पदों को इस ग्रंथ में सम्मिलित नहीं कर सके । इस गुटके के अंतिम पत्रों में जैसलमेर के बाफणा-पटवा-सेठ बहादुरमल आदि ने जो शत्र जय आदि तीर्थों की यात्रा के लिए विशाल संघ निकाला था, उसका विवरण देने वाली तीर्थमाला है जिसके १५. पद्य लिखने के बाद रिक्त स्थान छूटा हुआ है आगे के पद्य नहीं लिखे गए। उस रचना के अंतिम कुछ पद्य एक अन्य पत्र में प्राप्त हुए जो इस प्रति का अंतिम पत्र था । उसमें जितने पद्य मिले वे भी इस ग्रंथ में दिये गए हैं फिर भी बीच के ८ पद्य अभी तक त्रुटित ही रहे हैं। इसी प्रकार श्री जिन कुशल सूरि जी के छंद की प्रति का भी अंतिम तीसरा पत्र ही मिला, जिससे इस छंद के भी करीब ४६ पद्य दिये नहीं जा सके। इसी तरह प्राप्त गुटके में भी बीच २ के जो पत्र कम हैं, उसके कारण आदि जिन स्तवन, पार्श्व स्तवन
और शांति स्तवन भी त्रुटित रुप में ही दिये जा सके हैं। किसी सजन को इन त्रुटित रचनाओं की पूरी प्रति और अप्राप्त करीब ६५ पद जो इस संग्रह में नहीं दिये जा सके; प्राप्त हों तो हमें सूचित करने की कृपा करें। 'चक्र श्वरी' और 'अंबिका' के दो गीत जो अंत में दिये गए हैं वे एक अन्य प्रति में थे। इनके रचयिता अमर व अमरेस, वाचक अमर सिंधुर ही हैं, यह निश्चय-पूर्वक तो नहीं कहा जा सकता पर संभावना के रूप में ही उनको यहाँ संग्रहीत किया गया है। अमरसिन्धुर के उपलब्ध पद बिना किसी क्रम के लिखे हुए मिले थे और उनका उनके अंत में रचनाओं का नाम भी नहीं दिया गया है। इसलिए हमने अपने विचारों के अनुसार रचनाओं का नाम करण और अनुक्रम ठीक करके इस ग्रंथ को संकलित किया है।
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