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जिन मंदिर-स्तवन
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जिन-मंदिर-स्तवन राग-परज खम्भायती
[पिचकारण रंग वरसै गोकल में पिच०, मैं जमना में जल भर जात ही ज्यु ज्यु जोषा तरसै गोकल में पिच. ] ए चाल ।
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आज आनंद धन वरसै मिंदर में, आज श्रानंद० । प्रभुजी की महिर महाधन वरसत,
पाप तोप गए तरसै । मिंदर०११। आग सकल संघ को साथ मिल्यो है,
भाव मल मन हरसैं । मिंदर०१२। श्रा० त्रिभुवन साहिब तखत विराजे,
मुखरो जाको दरसै । मिंदर०।३। आ०। महिरवान महाराज बड़े हैं,
पुण्य योग से परसै । मिंदर०।४।प्रा० महानंद सुख दायक लायक,
दुख दोहग . हरस्यै । मिंदरशश्रा०) "अमर" सुसंपद सुख को दायक,
अहनिश नाम उचरस्यै । मिंदर०६॥ प्रा०
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