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( ८४ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
जिनराज-स्तवन
राग-कल्याण ऐसै जिनराज आज नैन सै निहारे, ऐस० । नहीं या कै कोह लोह मोह मान मारे,
वेद के अवेद जाण विषया रस वारे । ऐसै०१॥ करी अरी दूर हरी आठ ही अढारे,
जैत लही ते जिनंद उपसम असधारै । ऐसै ०।२। संपदा सुचंग गहि ज्ञान गुण धारै,
दीन कै दयाल प्रभु आतम उजवारे । ऐस०३। आस रास पूरो पास केले जन तारे,
"अमर" समर एक रंग आतम प्राधारे । ऐसे०१४। _ इति श्री चिंतामणिजी स्तवनम् ।
. जिन-स्तवन
राग-सोरठी रेखतो ( हजार बार सलम चाह से बुलाते थे, ए चाल में) जब हु ते जिणंद चंद इंद मिल पाते थे। इन्द्र मिल आते थे, सहिज सुख पाते थे। जब०।।
भक्ति से भरे भराव सीस, भी नमाते थे। जब०।२।
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