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अनुभव-होरी ( १४७ । तप जप संयम गुण उजवारी,
शील धरम नव वाड़ संभारी । सु०।३। केवल कमला लहि हितकारी,
चौ घन घाती दूर निवारी । सु०।४। मूलातम गुण तेम विचारी,
शिव रमणी परणी सुखकारी । सु। ५। सुमत प्रिया से प्रीत वधारी,
चेतनराय "अमर" पद पारी । सु०।६।
अनुभव-होरी
राग- तोड़ी मारू वसन्त हरष सुं अनुभव होरी पाई,
सुविवेकी जनम रमत सदाई । हरष सुं०। सुच संतोष सु सीतल जल है,
ज्ञान गुलाल सो गहिर बनाई । प्रेम पिचरका छूटत छिन छिन, ।
___ भर भर मुट्ठीयां अबीर उडाई । हरष सुं०।१। सात नयन की सतार भली है,
विविध नयन वाजिंत्र वजाई ।
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