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( १४६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथावि स्तवन-संग्रह मूलगी प्यारी तब मन भाई,
घेर दे पायो घर में । एरी सखि घे०४।मा आदर देत बाग में आयो,
तब हरखित भई (तब) मन में । एरी सखि त शमन ज्ञान गुलाल क्षमा जल लायो,
छिरकत है छिन छिन में। एरी सखि छि०।६।म। प्रेम पियालो मैं भर पायो,
मस्त भए तर मन में । एरी सखि म०७ मा मगन भए यह मोख नगर में,
"अमर" सुमत घर मन में । एरी सखि १०म०
चेतन-सुमति-होरो
राग- वसन्त सुनो री सखि ऐसे रमो होरी,
पाठ करम की तोरियै कोरी। सु०। राग द्वष दोष दूर विडारी,
काम क्रोध ममता कुं मारी। सु०।१। साधु संगत करियै सुखकारी,
सुच संतोष हियै में धारी। सु०।२।
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