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( २४ ) बम्बई चिन्तामणि पार्श्वनाथादि स्तवन -संग्रह
भोगी भमर भामण कुं भजणां,
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नेह न तोरो दोरी री । सखि हसि ० |४| पशु पूकार सुणि प्राणेसर,
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मोसैं चितरो लीधो चोरी री । सखि हसि० | ५ | गिरवर तजीयै घरकुं भजिये,
अरज सुणी जै गोरी री । सखि हसि०|६| गिरवाह गुणवंत धरावो,
'अमर' करो ए जोरी री । सखि हसि ०/७/
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नेमि - राजिमती - होरो
[होरी खेलूंगी संग लीयां सजनां, संग लीयां सजनां वालम लीयां अपनां. होरी खेलूँ । आओ मेरे बंभना, बैठो मेरे अंगना, थाल भर मोतियां को युङ्गी मैं दखणां, होरी खेलूँ गी० । ए चाल में बसन्त है ]
होरी खेलुंगी संग मिल्यां सजना,
संग मिल्यां सजना वालम मिल्या अपना । हो. । वो मेरे सजना, घर नाहिं तजना,
भोरी से राग भली पर भजनां । हो. |१| चित हित धरणां विलंब न करणा, पशुअ पुकारन क्या चित धरणा । हो |२|
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