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घम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( २३ ) प्रेम पिचरका नीर सुधार,
वाहत है तक तकि गोरी । सहसा०१७) लाल गुलाल मुट्ठी भर डारत,
अबीर उडावत भर झोरो । सहसा चंग बजावत गारी गावत,
हस हस बोलत है होरी । सहसा०६। बाल गोपाल सबे मिल खेलत,
नवली नेह लगी दोरी । सहसा०।१०। जोरे व्याह मनायो जदुपति,
'अमर' दंपत अवचल जोरी । सहसा० ॥११॥
नेमि-राजिमती-होरी हसि हसि खेलूँ होरी री, सखि हसि हसि खेलूँ होरी । प्राणनाथ जो गेह पधारे,
जुगत वनें तो जोरो री । सखि इसि०१॥ जदुपत ने जायकै समझावो,
घर आवो हठ छोरी री । सखि हसिका। विन अवगुण क्यु विरह सतावै,
गुणवंती तज गोरी री । सखि हसि०१३॥
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