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बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( ११ )
नेमि-राजीमति-स्तवन
राग-काफी वसन्त [ए री मेरो अंचरा पकर कै गयो, चल्यो जा ऐसो खिलारू भयो न भयो, मेरो०, ए चाल] ऐरी मेरो पिउ गिरिंद है गयो,
सखीरी ऐसो नेह कियो न कियो। ऐसो नेहरौ नोज भयो,
मेरो पिउ गिरिंद गयो, सखि मेरो० ॥१॥ आं० अरज करी बहु एक न मानी,
कहो सखि कपट कियौ न कियो ।२।स.ऐ.। पहिली प्रीत लगाय प्रिया से,
कहो सखि छेह दियौ न दियौ ।३।स.ऐ.। अब इनको वेसास न आवै,
कहो सखि मरम लयौ न लयौ ।४।स.ऐ.॥ तरणी मन हरणी नवि परणी,
कहो सखि जोगी भयौ न भयौ।शस.ऐ.। द्वारिकावासी मुगत अभ्यासी,
कहो सखि पातिक दह्यो न दह्यो।६।स.ऐ.। मैं भी पिया द संयम ल्पंगी, .
कहो सखि नेहरो रह्यौ न रह्यौ।७।स.ऐ.। पिउ प्यारी अमरापुर वसियै,
सुगुणां सुक्ख भयो री भयो।स.ऐ.।
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