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( १० ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
नेमि-राजिमती-स्तवन
(गल-हंतो नर हुँ तुहारा नगर में, धोले द्याह हारे धोले चाहई
मोहन लूट लई हुं तो० । ए चाल में छै-वसन्त )
हुँ तो न रहुँ तुहारा मंदिर में, मैं जाऊँगी होरे मैं तो जाऊँगी पिया के संग सखी, हुँ ।
तोरण आए पशु छुराए, काइ हम पर रीस करी रे (२) मैं तो० ॥ हुँ तो।
कंत हमारा दयाल कहावी, तो मो पर महिर करो रे (२) मैं तो०।२।हु तो।
रथड़ो फेरी शिव त्रिय हेरी, जीवन जोग वरो रे (२) मैं तो०३। तो।
विन अपराध तजत हौ वनता, का ही विचार करो रे (२) मैं तो०१४। हुँ तो।
तरण पणे तरुणी नै तजता, नहीं सोभाग वरो रे (२) मैं तो० ॥ तो।
राजुल जायके संयम लीनो, केवल लोछ वरो रे (२) मैं तो०।६। हुँ तो।
नेम रोजुल परमानंद पायो, "अमर" सुजस उचरो रे (२) मैं तो १७॥ हुँ तो।
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