________________
( १३८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
चेतन-वसंत
राग--वसन्त फागुण फाग सहाए सखी मेरी, अलवेसर घर पाए । फा. कुमति कुनारी केड लगी ताको, घर तज भज इहां धाए । फा.११॥ वैरण सौक विरह तन व्यापत, सो मेरे मन भाए । फा.। चेतनराय चतुर अति चंचल, निजगुण सुध दरसाए । फा.।२। सह चारण जांणि संतोष, प्रोत रीत परसाए । फा. हित चंछक ध्रम धनकी संचक, लायक नेह लगाए । फा.।३। अब मैं भई हूं परमानंदित, हरष हियै हुलसाए । फा.। 'अमर' आनंद लहै पिउ प्यारी, परम महा सुखपाए । फा.॥४॥
अनुभव-होरी
राग---फाग अनुभव रस, अनुभव रस अजब मची होरी । अनु.। विनय विवेक सु वसंत बनी है, फाग राग गावत गोरी। अनु.॥१॥ ज्ञान ध्यान वनराज वण्यो है, मन मांजर आंबे मोरी। अनु.।। नय सातन की नदी वहत है,भविक भ्रमर आवत दोरी। अनु.॥३॥ चेतनराय चतुर अति चंगे, विरह विथा कुं नित तोरी। अनु.॥४॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org