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सुमति-होरी
सुमति सोहागण संग रमत है, ज्ञान गुलाल भरी झोरी । अनु.।५। सुच संतोष भल केसर घोरी, जुगत मिली है या जोरी। अनु. | ६ | प्रेम पिचरका उपसम जल भर, धार चलावत भ्रम धोरी । अनु.|७| फाग मनायो ति सुख पायो, कप गई कर्म तणी कोरी । अनु. ८| निज सुभाव रत रामत रमतां, पर परिणित दोरी तोरी। अनु. | ६ | प्रीत रीत बाधी अनुपम, 'अमर' आनंद रमत होरी। अनु. १०।
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सुमति- होरी
( राग - जंगलै री ठुमरी में होरी )
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म्हारे हरप से आई होरी री, म्हांरे हरष० ।
सुमति सोहागण निज घर आई, जुगत भई अब जोरी री । म्हांरै . १ । पिउचित हित की प्रीत पिछानी, कुमता कुकरी कोरी री । म्हांरै . २ | दिल सुध समकित गुण दरसायो, गुणवंती या गोरी री । म्हांरै. ३ | निस वासर रस रंगै रमतां, 'विरह' विथा कं तोरी री । म्हांरै . ४ । काम क्रोध याकै कछु नाहीं, भांमणि ऐसी भोरी री । म्हांरै . ५। पिउ प्यारी की जोरी है जुगति, हरप 'अमर' रमै होरी री । म्हांरै.
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