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( ७६ ) बम्बई चिन्तामणिपाश्वनाथादि स्तवन-संग्रह
महिर तणो मटको लटको, कर श्री जिन देव । भव भव "अमरसिंधुर" में, दीजै चरण नी सेव ॥५॥
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन
राग-ख्याल श्री चिंतामणि पोस प्रभु जी,
सरण तुहारै आयो, मैं वारी जाउँ । सरण.। श्री.। भव अटवी चौगत में भमतां,
पुन्यै दरसण पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।१। पर उपगारी साचो परखी,
चरण कमल चित लायो । मैं वा.। गुणमणि भरियो जाणै दरियो,
सगुण साहिब मैं पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।। अतुलबली साहिब लहि एहवो,
__ मौ मन बहु ललचायो । मैं वा.। महिर लहिर सुनिजर सुपसाय,
'अमर' अधिक सुख पायो । मैं वा.। श्रीचिं.।३।
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